अंजनीगर्भ संभूत कपीन्द्र सचिवोत्तम । तेरे भुज दण्ड प्रचंड त्रिलोक में रखियो लाज मरियाद मेरी ॐ ऐं ह्रीं हनुमते रामदूताय लंकाविध्वंसनाय अंजनी गर्भ संभूताय शाकिनी डाकिनी डाकिनी विध्वंसनाय किलिकिलि बुबुकारेण विभिषणाय हनुमद्देवाय ॐ ह्रीं श्रीं हौं हाँ फट् स्वाहा।। “हनुमान जाग.—- किलकारी मार.—- तू हुंकारे.—- राम काज सँवारे.—- ओढ़ सिंदूर https://www.youtube.com/shorts/dIItTaco5eg
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